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शनिवार, 22 मई 2010

ग़ज़ल

तेरे ख़यालों से इस तरह मेरा मन महक उठे
ज्यूँ बच्चे के खेलने से आँगन महक उठे

तुझे सोचकर लिखूं तो लगती है यूँ ग़ज़ल
ज्यूँ शादी का जोड़ा पहने दुल्हन महक उठे

यूँ तो बहार ही से कलियाँ खिलें मगर
कुछ कलियों के खिलने से सावन महक उठे

हाथों से मुसलमां के हिन्दू को जो लगे
उस रंग की खुशबू से वतन महक उठे

5 टिप्‍पणियां:

स्वप्निल तिवारी ने कहा…

chaaro sher khubsurat lage.... aakhiri sabse badhiya laga...

दिलीप ने कहा…

bahut sundar...bahut khoob...

वीनस केसरी ने कहा…

बहुत बढ़िया कहन के लिए दिली दाद कबूल करें

Mrityunjay Kumar Rai ने कहा…

चर्चा मंच से यहाँ आया हूँ , बहुत अच्छी प्रस्तुती

http://madhavrai.blogspot.com/

http://qsba.blogspot.com/

दिगम्बर नासवा ने कहा…

यूँ तो बहार ही से कलियाँ खिलें मगर
कुछ कलियों के खिलने से सावन महक उठे

बहुत ही लाजवाब और खूबसूरत शेर है ... सुभान अल्ला ...