एहसास
रंग बिरंगी , कडवी मीठी अनुभूतियों की काव्यमय प्रस्तुति
शनिवार, 24 अप्रैल 2010
बूँद
जिंदगी भर
एक वीरान मरुस्थल की
सूखी धरती को खोदकर
कोशिश करता रहा
पानी की एक
बूँद निकालने की
भूल गया कि
तपती दोपहरी के
इस उष्णकाल में
सिमट गई होगी
पानी की हर बूँद
अपने आप में
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