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रविवार, 6 जून 2010

समझौता

इन

अंधेरों के

आलम में

मैं

दिल में

छुपे

रोशनी के

अरमानों

को

जला

पैदा

कर रहा हूँ

अपने लायक

उजाला

और

बढ़ रहा हूँ

धीरे धीरे

जीवन के

पथ पर

4 टिप्‍पणियां:

दिनेश शर्मा ने कहा…

लगे रहिए।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति...

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

बढ़िया भाव उनियाल जी , लिखते रहिये रचना में अभी जो चोटी मोटी गलतियां रह जाती है वे लेखन में निरंतरता आने पर स्वत : सुधरती चली जाती है जिसे मसलन आपने उजाला लिखा उसकी जगह रोशनी शब्द अधिक प्रभावी होता ! दिल में छुपे रोशनी के अरमानो नहीं बल्कि दिल में छुपे प्यार के अरमानो अधिक उचित है ! खैर कविता के भाव बहुत सुन्दर है ! लोगो की कविताएं, रचनाये निरतर पढ़िए, आपके लेखन में मजबूती आयेगी !

Parul kanani ने कहा…

beautiful!!