एक लम्बे अरसे के बाद इस ब्लॉग को पुनर्जीवित करने की कोशिश करते हुए एक कविता प्रकाशित कर रहा हूँ ,कृपया अपनी प्रतिक्रियाएं अवश्य दें जिससे निरंतर लिखते रहने का उत्साह बना रहे ,कविता कुछ इस तरह है ....
कितने आकाश हैं
इस
आकाश के नीचे
और
कितने ही धरातल
इस
जमीन के ऊपर
जिनके मध्य
तैर रही हैं
साँसे
बदल रहे हैं रंग
ढल रहे दिन
जम रही रातें
और
उग रहे हैं कई सूरज ......