एक लम्बे अरसे के बाद इस ब्लॉग को पुनर्जीवित करने की कोशिश करते हुए एक कविता प्रकाशित कर रहा हूँ ,कृपया अपनी प्रतिक्रियाएं अवश्य दें जिससे निरंतर लिखते रहने का उत्साह बना रहे ,कविता कुछ इस तरह है ....
कितने आकाश हैं
इस
आकाश के नीचे
और
कितने ही धरातल
इस
जमीन के ऊपर
जिनके मध्य
तैर रही हैं
साँसे
बदल रहे हैं रंग
ढल रहे दिन
जम रही रातें
और
उग रहे हैं कई सूरज ......
3 टिप्पणियां:
Nice poem .
हक़ीक़त को पाने के लिए गहरी नज़र, कड़ी साधना और निष्पक्ष विवेचन की ज़रूरत पड़ती
है।
और ज़्यादा तफ़सील जानने के लिए देखें-
http://vedquran.blogspot.com/2012/01/sufi-silsila-e-naqshbandiya.html
सूफ़ी
साधना से आध्यात्मिक उन्नति आसान है Sufi silsila e naqshbandiya
इस बेहतरीन रचना के साथ फिर से ब्लॉग जगत में आने पर आपका स्वागत है!
गहन भाव लिए अच्छी रचना
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