बर्क जब भी मेरे आशियाँ पे गिरी है
मुझे रोशनी से उसकी नई राह मिली है
यहाँ से हम तुम नहीं जा सकते एक साथ
मज़हब की ये बड़ी ही तंग गली है
इस ओर खड़े इस भिखारी की आह
उस ओर खड़े उस मंदिर से बड़ी है
नई हवा में ना घोलो ये बंटने की रवायत
हर इंसान इंसानियत की एक कड़ी है
बुधवार, 11 अगस्त 2010
मंगलवार, 3 अगस्त 2010
ग़ज़ल के चंद शेर
तमाम दर्द पैवस्त करके सीने में
है लुत्फ़ कुछ अलग इस तरह से जीने में
मुझे तलाश नहीं है मसर्रतों की अब
मज़ा सा आने लगा आंसुओं को पीने में
सिसक रहे हैं जो बच्चे उन्हें हंसा दो जरा
क्या ढूंढते हो भला काशी में मदीने में
है लुत्फ़ कुछ अलग इस तरह से जीने में
मुझे तलाश नहीं है मसर्रतों की अब
मज़ा सा आने लगा आंसुओं को पीने में
सिसक रहे हैं जो बच्चे उन्हें हंसा दो जरा
क्या ढूंढते हो भला काशी में मदीने में
रविवार, 1 अगस्त 2010
सफ़र
कल तक जो कुछ
'अच्छा' बचा था
मेरे पास
सिर्फ उसे
और सिर्फ उसे ही
साथ लेकर
तय करना
चाहता हूँ
मैं
'आज' का सफ़र
'अच्छा' बचा था
मेरे पास
सिर्फ उसे
और सिर्फ उसे ही
साथ लेकर
तय करना
चाहता हूँ
मैं
'आज' का सफ़र
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