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शनिवार, 24 अप्रैल 2010

बूँद

जिंदगी भर
एक वीरान मरुस्थल की
सूखी धरती को खोदकर
कोशिश करता रहा
पानी की एक
बूँद निकालने की
भूल गया कि
तपती दोपहरी के
इस उष्णकाल में
सिमट गई होगी
पानी की हर बूँद
अपने आप में

5 टिप्‍पणियां:

दिलीप ने कहा…

bahut khoobsoorat...

बेनामी ने कहा…

बहुत खूब - सच्चा और अच्छा अहसास

शशांक शुक्ला ने कहा…

बहुत सुंदर रचना है

Yugal ने कहा…

अच्छी शुरुआत, बधाई हो

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सटीक रचना.....

कृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा दें....टिप्पणी करने में आसानी रहे गी