मेरी मानो तो
रहो खबरदार
उन लोगों से
जो बाँध देते हैं तुमको
शब्दों की सुनहरी
बेड़ियों से
जो लहराते हुए
फेंकते हैं तुम पर,
शब्दों की मखमली चादर
और ढक देते हैं
तुम्हारी आँखों को
जो कभी सहलाते और कभी
गर्माते हैं तुम्हें
शब्दों से,
शब्दों का मुखौटा
पहने ये लोग
अपने शब्दों की हथेली
तुम्हारे पांवों के नीचे रख ,
उठाते हैं तुम्हें ऊंचा
और दिखाते हैं पल भर को
वो सतरंगी आसमान
जो कभी भी नहीं हो सकता
तुम्हारा !
मेरी मानो तो
रहो खबरदार
शब्दों की
बाजीगरी से
4 टिप्पणियां:
shaandaar...
बहुत अच्छी कविता.... सच लिखा है एकदम...
शब्दों का मुखौटा
पहने ये लोग
अपने शब्दों की हथेली
तुम्हारे पांवों के नीचे रख ,
उठाते हैं तुम्हें ऊंचा
और दिखाते हैं पल भर को
वो सतरंगी आसमान
जो कभी भी नहीं हो सकता
तुम्हारा !
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति....एक सच से रूबरू करती हुई...
बहुत सही!!
एक विनम्र अपील:
कृपया किसी के प्रति कोई गलत धारणा न बनायें.
शायद लेखक की कुछ मजबूरियाँ होंगी, उन्हें क्षमा करते हुए अपने आसपास इस वजह से उठ रहे विवादों को नजर अंदाज कर निस्वार्थ हिन्दी की सेवा करते रहें, यही समय की मांग है.
हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में आपका योगदान अनुकरणीय है, साधुवाद एवं अनेक शुभकामनाएँ.
-समीर लाल ’समीर’
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