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रविवार, 16 मई 2010

सड़क पर ....

अक्सर

चलते हुए

सड़क पर

दिख जाती हैं मुझे

कई

लुटी हुई

जिंदगियां

वीरान आंखों

में कहीं

गहरे तक धंसी

निराशा ,हताशा

और

सूखी नसों में

खून

की जगह

दौड़ती मौत

दिख जाती है मुझे

अक्सर

चलते

हुए

सड़क पर

4 टिप्‍पणियां:

दिलीप ने कहा…

sahi kaha...zindagi ka hissa ban gayi hai lagta hai ye zindgaaniya

Udan Tashtari ने कहा…

गहरे भाव!

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

बहुत सुन्दर कृति उनियाल जी !

sunil kumar ने कहा…

bhavnaon ki achhi abhivyakti sundar rachna ke
liye badhai