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गुरुवार, 13 मई 2010

दो जून की रोटी

मासूम बचपन ने
बुना था जो एक
विशाल सपना
वो
जवानी तक आते आते
सिकुड़कर
इतना छोटा
हो गया कि अब
दायरे में उसके
आती हैं
सिर्फ
दो जून की रोटी

2 टिप्‍पणियां:

मनोज कुमार ने कहा…

विशाल सपना
जवानी तक आते आते
सिकुड़कर
इतना छोटा
हो गया
गंभीर अहसास।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत सटीक बात ...और गहरी सोच......



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