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सोमवार, 7 जून 2010

मेरी ग़ज़ल का हर लफ्ज़ जो तेरा .....

मेरी ग़ज़ल का हर लफ्ज़ जो तेरा अक्श हो जाए
सारे जहां को मेरी कलम से रश्क हो जाए

ये नज़र फेर दो एक पल को मेरी जानिब अगर
तो कुछ दिन और जीने का बंदोबश्त हो जाए

साथ वक़्त का है जब तलक ये लम्हें जी लें
ये वक़्त जाने कब तेरे मेरे बरक्श हो जाए

वो पल आखिरी पल हो मेरे जीवन का "शाकिर"
जब मेरे भीतर के जुनून की शिकश्त हो जाए

6 टिप्‍पणियां:

माधव( Madhav) ने कहा…

बहुत बढ़िया

शानदार

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

वो पल आखिरी पल हो मेरे जीवन का "शाकिर"
जब मेरे भीतर के जुनून की शिकश्त हो जाए

Bahut sundar > shakir upnaam hai kyaa ?

दिगम्बर नासवा ने कहा…

वो पल आखिरी पल हो मेरे जीवन का "शाकिर"
जब मेरे भीतर के जुनून की शिकश्त हो जाए ..

सच है जब जनून .. जूसतजू ख़त्म तो जीवन ख़त्म ...

Dr. C S Changeriya ने कहा…

dil ka sara hal kah diya

मनोज कुमार ने कहा…

बेहतरीन।

आदेश कुमार पंकज ने कहा…

बहुत सुंदर और प्रभावशाली
सुंदर रचना के लिए बधाई