तेरे ख़यालों से इस तरह मेरा मन महक उठे
ज्यूँ बच्चे के खेलने से आँगन महक उठे
तुझे सोचकर लिखूं तो लगती है यूँ ग़ज़ल
ज्यूँ शादी का जोड़ा पहने दुल्हन महक उठे
यूँ तो बहार ही से कलियाँ खिलें मगर
कुछ कलियों के खिलने से सावन महक उठे
हाथों से मुसलमां के हिन्दू को जो लगे
उस रंग की खुशबू से वतन महक उठे
शनिवार, 22 मई 2010
गुरुवार, 20 मई 2010
आम आदमी
मैं
एक आम आदमी
रोज सवेरे
सपनों भरी नींद
का मोह त्यागकर
उठता हूँ ,
आईने में,
कल तक
चेहरे पर उभर आई
खरोंचों को
देखकर अनदेखा
करता हुआ
एक नए संघर्ष के लिए
खुद को तैयार
करता हूँ
और
ना जाने कितने ही
कदमों द्वारा
रौंदी गई
सडकों पर
भीड़ का हिस्सा बन
निकल पड़ता हूँ ,
मैं
एक
आम आदमी
एक आम आदमी
रोज सवेरे
सपनों भरी नींद
का मोह त्यागकर
उठता हूँ ,
आईने में,
कल तक
चेहरे पर उभर आई
खरोंचों को
देखकर अनदेखा
करता हुआ
एक नए संघर्ष के लिए
खुद को तैयार
करता हूँ
और
ना जाने कितने ही
कदमों द्वारा
रौंदी गई
सडकों पर
भीड़ का हिस्सा बन
निकल पड़ता हूँ ,
मैं
एक
आम आदमी
रविवार, 16 मई 2010
सड़क पर ....
अक्सर
चलते हुए
सड़क पर
दिख जाती हैं मुझे
कई
लुटी हुई
जिंदगियां
वीरान आंखों
में कहीं
गहरे तक धंसी
निराशा ,हताशा
और
सूखी नसों में
खून
की जगह
दौड़ती मौत
दिख जाती है मुझे
अक्सर
चलते
हुए
सड़क पर
चलते हुए
सड़क पर
दिख जाती हैं मुझे
कई
लुटी हुई
जिंदगियां
वीरान आंखों
में कहीं
गहरे तक धंसी
निराशा ,हताशा
और
सूखी नसों में
खून
की जगह
दौड़ती मौत
दिख जाती है मुझे
अक्सर
चलते
हुए
सड़क पर
गुरुवार, 13 मई 2010
दो जून की रोटी
मासूम बचपन ने
बुना था जो एक
विशाल सपना
वो
जवानी तक आते आते
सिकुड़कर
इतना छोटा
हो गया कि अब
दायरे में उसके
आती हैं
सिर्फ
दो जून की रोटी
बुना था जो एक
विशाल सपना
वो
जवानी तक आते आते
सिकुड़कर
इतना छोटा
हो गया कि अब
दायरे में उसके
आती हैं
सिर्फ
दो जून की रोटी
बुधवार, 12 मई 2010
शब्दों के मुखौटे
मेरी मानो तो
रहो खबरदार
उन लोगों से
जो बाँध देते हैं तुमको
शब्दों की सुनहरी
बेड़ियों से
जो लहराते हुए
फेंकते हैं तुम पर,
शब्दों की मखमली चादर
और ढक देते हैं
तुम्हारी आँखों को
जो कभी सहलाते और कभी
गर्माते हैं तुम्हें
शब्दों से,
शब्दों का मुखौटा
पहने ये लोग
अपने शब्दों की हथेली
तुम्हारे पांवों के नीचे रख ,
उठाते हैं तुम्हें ऊंचा
और दिखाते हैं पल भर को
वो सतरंगी आसमान
जो कभी भी नहीं हो सकता
तुम्हारा !
मेरी मानो तो
रहो खबरदार
शब्दों की
बाजीगरी से
रहो खबरदार
उन लोगों से
जो बाँध देते हैं तुमको
शब्दों की सुनहरी
बेड़ियों से
जो लहराते हुए
फेंकते हैं तुम पर,
शब्दों की मखमली चादर
और ढक देते हैं
तुम्हारी आँखों को
जो कभी सहलाते और कभी
गर्माते हैं तुम्हें
शब्दों से,
शब्दों का मुखौटा
पहने ये लोग
अपने शब्दों की हथेली
तुम्हारे पांवों के नीचे रख ,
उठाते हैं तुम्हें ऊंचा
और दिखाते हैं पल भर को
वो सतरंगी आसमान
जो कभी भी नहीं हो सकता
तुम्हारा !
मेरी मानो तो
रहो खबरदार
शब्दों की
बाजीगरी से
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